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Friday 20 July 2012

यूं कब तक चलेगा अमेरिका से झारखंड सरकार का 'आपका सीएम.कॉम' फर्जी वेबसाइट


झारखंड में कायदा-कानून नाम की कोई चीज नहीं बची है। हालत यह है कि सत्ताशीर्ष पर बैठे लोग ही इसकी धज्जियां उड़ा रहे हैं। जहां एक ओर भाजपानीत अर्जुन मुंडा सरकार के संचालन समिति के अध्यक्ष एवं झामुमो सुप्रीमों शिबू सोरेन नगड़ी में रांची हाई कोर्ट के फैसले के विरुद्ध जाकर अधिग्रहित जमीन पर ग्रामीणों से हल चलाने का फरमान जारी कर डालते हैं , वहीं करोड़ों रुपये के सरकारी खर्च व दुरुपयोग के साथ ही सरकारी संरक्षण में श्री अर्जुन मुंडा का www.aapkacm.com  का फर्जी संचालन जारी है।
इस मुद्दे को राजनामा.कॉम ने सप्रमाण करीब चार माह पहले ही “ अर्जुन मुंडा सरकारी खजाने से उड़ा रहे हैं करोड़ो रुपये !   http://raznama.com/?p=9088  ”   शीर्षक से उजागर किया था , लेकिन न तो किसी संबंधित आला अधिकारी के कानों में जूं रेगीं और न ही खुद मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने ही सुध ली।
झारखंड सरकार के सूचना एवं जन संपर्क विभाग द्वारा इस वेबसाइट को लेकर  समाचार पत्र-पत्रिकाओं, न्यूज चैनलों, एफएम रेडियो आदि से लेकर अन्य संचार माध्यमों पर करोड़ो रुपये प्रचार-प्रसार में लुटाने के बाद आम लोगों को कितना लाभ पहुंचा है…. यह अलग जांच का विषय है। फिलहाल सनसनीखेज तथ्य यह है कि पूर्णतः सरकारी नियंत्रण में चलाये जा रहे www.aapkacm.com  का अधिकारिक निबंधन-स्वामित्व न तो सरकार के किसी महकमे के पास है, न मुख्यमंत्री के पास है और न ही श्री अर्जुन मुंडा के पास। 
सबसे गैरकानूनी पहलु तो यह है कि  www.aapkacm.com का संचालन whois identity के अनुसार किसी  Kishore Patel नाम के व्यक्ति के द्वारा  8807 , ,Juneberry Rd, Lewis Center, Ohio 43035 , United States से हो रहा है। इस वेबसाइट का Administrative Contact: Patel, Kishore  @hotmail.com, 8807 Juneberry Rd, Lewis Center, Ohio 43035, United States, (614) 859-5677, Technical Contact: Patel, Kishore  @hotmail.com, 8807 Juneberry Rd,  Lewis Center, Ohio 43035, United States, (614) 859-5677,  Domain servers in listed order: NS47.DOMAINCONTROL.COM, NS48.DOMAINCONTROL.COM बताया गया है।
उल्लेखनीय है कि भारत सरकार की गाइड लाइन में साफ़ अंकित है की कोई भी सरकारी वेबसाइट gov.in में होनी चाहिए। मतलब डॉट कॉम का प्रयोग सरकारी वेबसाइट में नहीं किया जा सकता है…. क्यूंकि कॉम का मतलब होता है  कॉमर्शियल। और जिस तरह से झारखंड सरकार के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के नाम सेwww.aapkacm.com  बतौर कॉमर्शियल चलाया जा रहा है उसमें गोपनीयता की भी कोई गारंटी नहीं है। ………….. मुकेश भारतीय

Tuesday 17 July 2012

माफ कीजियेगा झारखंड के सीएम साहब !

जब रोम जल रहा था तो नीरो बंशी बजा रहा था। लेकिन माफ कीजियेगा झारखंड के सीएम अर्जुन मुंडा जी, मैं नीरो की श्रेणी में खड़ा नहीं हो सकता। सुना है कि आप हैलीकॉप्टर हादसे के बाद प्रायः विस्तर पर पड़े रहते हैं और कभी-कभार व्हील चेयर या बैशाखी के सहारे आवासीय परिसर में ही कुछ घुम-फिर भी लेते हैं। आपके खबरिया समाचार पत्रों और चैनलों से ज्ञात होता है कि आप राज्य की शासन व्यवस्था की बागडोर वखूबी संभाल रहे हैं। जाहिर भी है कि प्रायः शारीरिक रुप से चोटिल आदमी मानसिक रुप से घायल थोड़े होता है।
ऐसे मैं भी एक हादसे का शिकार हो चुका हूं। फर्क इतना है कि आप 10-15 फुट की ऊंचाई से हेलीकॉप्टर से रांची हवाई अड्डा पर गिरे और मैं वर्ष 1994 में  पटना के अगमकुआं गंगा सेतु पुल से  एक टेम्पो के साथ 60 फीट लुढ़का। उस हादसे में  बेचारे 3 लोग भगवान के प्यारे हो गये और मेरी  भी लगभग हड्डी-पसली एक हो गई थी। आपको पायलट की बुद्धिमानी ने बचाया तो मुझे सड़क किनारे लगे एक शीशम के पेड़ ने गोद लेकर।  श्रीराम की देन से सब सही सलामत बच गये। ईश्वर सबों को लंबी उमर दे। खास कर आपको..ताकि आप झारखंड के लिये वे सब कर सकें,जो मन-मस्तिष्क में सोच रखा है।
वेशक, आपमें और मुझमें ऐसे तो आस्मां-जमीं का फर्क है। कहां राजा भोज और कहां गंगुआ….। कहां आप एक सीएम और कहां मैं एक आम नागरिक।  लेकिन उस हादसे के बाद से मैंने भी वही निर्णय लिया था, जो आपने लिया है। आपने खुद कहा है कि हैलिकॉप्टर हादसे के बाद जो नव जीवन मिला है, वह दूसरों की सेवा के लिये है। अब आपके मन में दूसरों की सेवा की भावना के क्या मायने हैं, ये आप जानें या राम जानें। ऐसे आपने अपने सरकारी आवास परिसर में रामभक्त हनुमान जी की मूर्ति स्थापना कर संकेत तो दे ही दिया है। मेरा तो मकसद बिल्कुल साफ है..कुव्यवस्था के खिलाफ खुली जंग। अंजाम चाहे कुछ भी हो। मुझे जब कोई भय सताता है तो हनुमान जी से पहले पटना के अगमकुंआ के उस शीशम के पेड़ को याद कर लेता हूं। सब डर-भय छू मंतर हो जाता है। 
खैर, छोड़िये इन बातों को। भगवान सबका भला करे।   दुःख की बात तो यह है कि आप उधर विस्तर पर पड़े थे और इधर एक बिल्डर से अखबार के फ्रेंचाईजी बने साहब ने एक साथ  तीन थानों की पुलिस के हाथों मुझे एक अदना पत्रकार से 15 लाख का रंगदार बनवा कर जेल भिजवा दिया।   उस साहेब को मेरे वेबसाइट www.raznama.com के एक समाचार पर आपत्ति थी। यह बात मुझे जेल जाने के थोड़ी देर पहले आपके सरकारी आवास के ठीक वगल में स्थित गोंदा थाना में बताया गया। मुझ पर  लिखित आरोप लगाया गया है कि मैंने कई बार उस बिल्डर साहेब के अंग्रेजी अखबार के दफ्तर में जाकर 15 लाख की रंगदारी मांगी और यह भी धमकी दिया कि अगर 15 लाख नहीं मिलने पर उस करोड़पति साहेब को एक हत्या के मामले में फंसा दूंगा। उसमें मेरे फेसबुक एकांउट की भी चर्चा की गई। 
शायद आपको यह बात बताने की जरुरत नहीं है कि सच क्या है? मुझे जहां तक जानकारी है , उस आलोक में आप सब कुछ जानते हैं। मुझे तो यहां तक बताया जा रहा है कि मेरे खिलाफ जो भी कार्रवाई की गई है,वो आपके सरकारी निवास (सीएम हाउस) के इशारे पर की गई थी बल्कि आपके निर्देश पर ही की गई थी। अगर आपको या किसी को समाचार की सत्यता पर संदेह था तो उसकी अलग प्रक्रिया थी। समाचार के तथ्यो या स्रोतों की पड़ताल करवाई जा सकती थी। समाचार प्रसारित होने के कई दिनों बाद उक्त तरह के आरोप लगा कर हड़बड़ी में जेल भेजने की मंशा अभी तक मैं समझ नहीं पाया हूं। नीचे से उपर तक के सभी पुलिस अधिकारी यही बताते हैं कि उन्होंने उपर के आदेश का पालन किया है। 
अब जहां तक सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, झारखंड सरकार और उसके अधिकारियों द्वारा कॉरपोरेट या छद्म मीडिया हाउसों की सांठ-गांठ का सबाल है तो इसमें बहुत बड़ी गड़बड़ झाला है। करोड़ो रुपये का दुरुपयोग-घोटाला की गई है और अभी भी जारी है। आप इसकी जांच करवा कर देख लें । सब आयने की तरह साफ हो जायेगा। आप झारखंड जैसे प्रदेश के सीएम हैं। मुझ जैसा कोई आपसे जबरिया जांच थोड़े करवा सकता है। हां, एक बात तो तय है कि यदि आप इसकी फौरिक जांच-कार्रवाई नहीं करवाई तो भविष्य में इसके छींटे आप पर पड़ने निश्चित है। ये व्यूरोक्रेट्स और कॉरपोरेट्स क्या बला है। आज सत्ता आपके हाथ में है तो ये लोग आपके चारो ओर दिख रहे हैं। कल सत्ता किसी दुसरे के हाथ में जायेगी तो  ये लोग किसी और के चारो ओर खड़े हो जायेगें।
.………………….मुकेश भारतीय 

Tuesday 10 July 2012

जरूरी है भाषा का स्त्रीकरण एवं जनतंत्रीकरण :वंदना टेटे


झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा की महासचिव वंदना टेटे ने  अपना वक्तव्य हैदराबाद विवि के अंगेजी विभाग द्वारा आयोजित तीन दिवसीय सेमिनार में रखा। ‘भाषा, साहित्य और आदिवासी औरतें’ (Tongue, Text and Tribal Women) विषय पर बोलते हुए वंदना  ने कहा कि मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि चाहे एंथ्रोपोलोजिकल स्टडी हो, सोशियोलॉजिकल स्टडी हो या फिर साहित्यिक सृजन, सभी विषयों एवं विधाओं में आदिवासी स्त्रियों को लेकर ‘घोटुल’ दृष्टि और उत्सुकता ही प्रमुख रही है। यह लगभग स्थापित कर दिया जा चुका है कि आदिवासी स्त्रियां हर वक्त, हर किसी के साथ सहवास के लिए तत्पर रहती हैं क्योंकि उनका समाज यौन वर्जना से मुक्त समाज है। घोटुल को लेकर गढ़ी गयी यौन क्रियाओं की कल्पनाओं के अनुसार ही बाहरी समाज आदिवासियों और आदिवासी स्त्रियों के बारे में सोचना शुरू करता है। जबकि घोटुल, गितिओड़ा या धुमकुड़िया आदिवासी जन शिक्षण के केन्द्र रहे हैं और ये वचिक आदिवासी विश्वविद्यालय यौन क्रियाओं के केन्द्र नहीं हैं। 
इन पारंपरिक शिक्षण केन्द्रों में जीवन के सभी आयामों को पुरानी पीढ़ी द्वारा नई पीढ़ी को हस्तांतरित किया जाता है। लेकिन सभ्य, विकसित और लिखित समाज घोटुल की स्वनिर्मित कल्पना से बाहर आ कर उस सच्चाई से साक्षात्कार नहीं करना चाहता है जिसके कारण आज देश का पूरा आदिवासी समाज ग्लोबल लूट के पहले निशाने पर है।उन्होंने कहा कि जब आप आदिवासी समाज पर लिखते हैं तो उनकी मूल सामाजिक प्रवृतियों और जीवनमूल्यों का ध्यान रख रहे हैं या नहीं, यह सवाल अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है। यह भी देखना होगा कि आप किन जीवनमूल्यों के साथ उन्हें प्रस्तुत कर रहे हैं, क्योंकि शेष दुनिया उन्हें उसी रूप में जानेगी, जिस रूप में आप उन्हें उद्घाटित रहे हैं। 
स्पष्ट है कि साहित्य में आदिवासी स्त्रियों की उपस्थिति या उनके चित्रण का सवाल सीधे-सीधे वर्गीय और लिंगगत दृष्टि से जुड़ा हुआ है। यह महत्वपूर्ण तो है ही कि उसे आदिवासी लिख रहा है या गैर-आदिवासी, पर इससे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण सवाल यह है कि वह किस भाषा का इस्तेमाल कर रहा है। क्योंकि अगर आपकी भाषा ही स्त्री, दलित-आदिवासी विरोधी है, तो सबसे पहले आपको उस भाषा को और उसकी शब्दावलियों का स्त्रीकरण एवं जनतंत्रीकरण करना होगा। और यह काम विशुद्ध रूप से एक सचेत वर्गीय सामाजिक-राजनीतिक कार्रवाई के बिना संभव नहीं है। 

Friday 6 July 2012

मुंडा सरकार की पुलिसिया सिस्टम पर सबाल


जब किसी भी सिस्टम का फिल्टर खराब हो जाये,तब अविश्वास और उत्पीड़न जन्म लेता है। आज हम बात करते हैं पुलिस फिल्टर सिस्टम की। इसमें कोई शक नहीं कि पुलिस नेताओं खास कर सत्ता पर कुंडली मार कर बैठे व्यूरोकेट्स के इशारे पर नाचती है। एक आम आदमी के दुःख-दर्द और उसकी सच्चाई कोई मायने नहीं रखती। एक चौकीदार-कांस्टेवल से लेकर पुलिस सिस्टम का हर महकमा अधिक से अधिक काली कमाई करने पर उतारु है। हम यह नहीं कहते कि इस सिस्टम से जुड़े हर लोग निकम्मे और भ्रष्ट हैं। लेकिन इतना तो सत्य है कि इस सिस्टम में अगर कुछ लोग ईमानदार हैं तो उनकी कहीं कोई रोल नजर नहीं आता।

पिछले माह मुझे भगवान बिरसा मुंडा केन्द्रीय कारागृह में 13 दिनों तक एक बंदी के तौर पर रहने का अवसर मिला। वहां पर मैंनें जिस कैदी की भी आत्मा झकझोरने की कोशिश की…बस एक ही टीस उभरी कि पुलिस ने अपना काम सही से नहीं किया। नतीजतन वे वर्षों से बंदी हैं। एक कैदी के रुप में सजा काट रहे हैं। उनकी या उनके परिवार की माली हालत ऐसी नहीं है कि मंहगी न्यायायिक व्यवस्था में उच्चतम न्यायालय तो दूर स्थानीय नीचली अदालत की प्रक्रिया भी झेल सके।

भगवान बिरसा मुंडा केन्द्रीय कारागृह के ऐसे कई बंदियों- कैदियों की रोंगटे खड़े कर देने वाली दास्तां आपके सामने रखेगें, जो आपको चीख-चीख कर बतायेगी कि उसमें तोंद फुलाये पुलिस कर्मियों की फौज कितने बड़े अपराधी हैं। लोकधन के साथ काली कमाई के बल अपने बीबी-बच्चों के साथ ऐश-मौज कर रहे इन लोगों की कृपा से झारखंड में निरीह लोग भी कैसे नक्सली और अपराधी बना दिये गये हैं। 

बहरहाल, सबसे पहले मैं खुद को सामने रखना चाहूंगा। ताकि यह पता चल सके कि मेरा व्यक्तिगत अनुभव कैसा रहा। गांव में एक कहावत भी है कि जेकर पैर में फटे बिबाई, उही जाने दर्द मेरे भाई। विगत 31 जून को मैं अपने मकान के दूसरी मंजिल के छत पर अपने परिवार के साथ सोया था कि अचानक करीब 12:15 बजे 3 पुलिसकर्मी अपना बन्दुक तान मुझे नाम लेकर उठाया और नीचे उतर बाहर चलने को कहा। जब मैंनें परिचय पूछा और साथ चलने का कारण जानना चाहा तो सीधा जबाब मिला कि चुपचाप नीचे चलो, नहीं तो गोली मार देगें। सच पुछिये तो , मैं उस वक्त समझ नहीं पा रहा था कि ये कौन लोग हैं। अपराधी हैं। नक्सली हैं। मेरे बीबी-बच्चे भी काफी भयभीत होकर कांप रहे थे। 

फिर भी मैं किसी तरह नीचे उतरा और गेट खोल कर बाहर निकला। मगर ये क्या ! सामने पुलिस की चार गाड़ी। मेरे मकान के चारो ओर पुलिस। मैं दंग था वह नजारा देख कर। समझ नहीं पा रहा था कि आखिर माजरा क्या है। इसी बीच सामने स्थानीय थाना के प्रभारी ने कहा कि आपके वेबसाइट राजनामा डॉट कॉम पर प्रकाशित एक समाचार के संबंध में पूछताछ के लिये सदर डीएसपी के पास अभी चलना है। जब मैंने कहा- इतनी रात को ? प्रभारी साहब का कहना था- उन्हें कुछ मालूम नहीं,उपर से आदेश है। उस समय मैं लुंगी-गंजी में था। इसे देख थाना प्रभारी ने कहा कि ड्रेस चेंज कर लीजिये। जब मैं ड्रेस चेंज करने अपने कमरे में गया तो पुलिसकर्मियों ने मेरा लैपटौप,मोबाईल और मोडम भी साथ उठाते चले।

इसके बाद मुझे राइफल धारी जवानों के बीच एक पुलिस जीप में बैठा कर गोंदा थाना ले जाया गया, जो झारखंड विधान सभा के अध्यक्ष के आवास के ठीक सामने और मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के आवास के बगल में है। उस थाना के एक कमरे में मुझे ले जाया गया। वहां मुझे पुलिस के जवानों ने चारो ओर से घेरे लिया। कमरे की लाइट बुझा दी गई। इसके बाद कोई एक शख्स ( अभी तक नहीं जान पाया हूं कि वह शख्स कौन था )आया और पहले तो सभी पत्रकारों को ( सीधे मुझे नहीं ) दलाल,ब्लैकमेलर ढेर सारी भद्दी-भद्दी गालियां देने के बाद मुझसे पूछा कि तुमने पबन बजाज के घर जाकर 15 लाख की रंगदारी मांगी है ? मैं उस शख्स के इस सबाल पर दंग था। कौन पवन बजाज ? फिर मुझे याद आया कि कहीं वो बिल्डर पवन बजाज तो नहीं, जो अंग्रेजी दैनिक पायोनियर का रांची में नया फ्रेंचाइजी बना है और जिसे लेकर कुछ दिन पहले मैंने अपने वेबसाइट पर दो खबरें प्रकाशित की है। इसके बाद मैंने उस शख्स के सामने यह स्पष्ट कर दिया कि मैं पवन बजाज को आज तक देखा तक नहीं हूं, उसे लेकर खबरें प्रसारित की है।

इतना सुनने के बाद वह शख्स उठ कर चला गया और फिर कमरे की लाइट जला दी गई। फिर गोंदा थाना के पुलिस प्रभारी ने करीब रात के 1:30 बजे मुझे थाने के एक कमरे में बंद करने का निर्देश देकर चले गये। उसके बाद मैं रात भर खुली खिड़की के रड पकड़ खड़ा रहा और सोचता रहा कि यह सब क्या हो रहा है ? सुबह करीब सात बजे से मेरे चिरपरिचित युवा पत्रकार साथी थाना पहुंचने लगे और करीब 10 बजे तक जमे रहे। इस संबध में उन लोगों ने रांची के एसएसपी साकेत कुमार सिंह से मिल कर बात की। एसएसपी ने यह कह कर हाथ अपना दोनों हाथ खड़े कर दिये कि उपर का आदेश है और मीडिया की बात है। इस मामले में वे कुछ नहीं कर सकते।

इसके बाद करीब 10:30 बजे सदर डीएसपी राकेश मोहन सिन्हा पहुंचे। तब मुझे बंद कमरे से निकाल कर उनके सामने पेश किया गया। उन्होंने कहा कि तुम बड़े-बड़े लोगों के खिलाफ लिखते हो। वे मेरे एक समाचार के मौज-मस्ती शब्द की व्याख्या मस्ती कंपनी के कंडोम से करने लगे। इस मुद्दे पर उनसे एक अखबार की नौकरी छोड़ चुके वरिष्ठ पत्रकार किसलय जी से बहस भी हुई। बाद में डीएसपी साहब ने सीएम हाउस का आदेश बता कर मुझे करीब 11:00 बजे जेल भेजने का निर्देश देकर चलते बने।

इस संवंध में जब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के रिपोर्टरों ने गोंदा थाना प्रभारी से पुछा तो उन्होंने स्पष्ट तौर पर बताया कि उन्होंने इस मामले में कोई छानबीन नहीं की है और गिरफ्तारी की सारी कार्रवाई डीएपी के आदेश पर हुई है। 

इस पुरे मामले का रोचक पहलु यह है कि मुझे जेल भेजने के मात्र आधा घंटा पहले ही पवन बजाज की लिखित शिकायत सूचना थाना पहूंची और आनन-फानन में 15 लाख की रंगदारी मांगने, हत्या के मामले में फंसाने समेत आइटी एक्ट की धारायें युक्त मामला दर्ज किया गया। ….…………… मुकेश भारतीय

Tuesday 3 July 2012

एक न्यूज चैनल ने की बाबा भोले नाथ की लायजनिंग

झारखंड की राजधानी रांची से एक दिलचस्प खबर आई है। खबर यह है कि अपना बिहार-झारखंड संस्करण प्रसारित कर रहे एक न्यूज चैनल ने आज मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा द्वारा विश्व प्रसिद्ध देवघर एवं वासुकीनाथ मेले के ऑनलाइन उद्घाटन की लायजनिंग कर डाली। रांची के अन्य प्रायः किसी भी न्यूज चैनलों को इस उद्घाटन को कवरेज करने नहीं दिया। यहां तक कि रांची दूरदर्शन को भी बाहर ही मुंह ताकते रहना पड़ा।
कहते हैं कि इस मामले के विरोध में अन्य न्यूज चैनलों के रिपोर्टरों ने जम कर विरोध किया। इस विरोध को देखते हुये झारखंड सरकार के सूचना एवं जन संपर्क विभाग के अधिकारियों ने माफी मांगते हुये मामले को शांत किया और भविष्य में ऐसी हरकत न दुहराने का बचन दिया। 
बात कुछ भी हो लेकिन, इस घटना ने न्यूज चैनलों के टीआरपी के खेल का एक नया चरित्र उजागर कर दिया है। साथ हीं इससे यह भी स्पष्ट होता है कि झारखंड सरकार के सूचना एंव जन संपर्क विभाग से लेकर सीएम हाउस तक की नीति व्यापक जन संपर्क के बजाय अपने दुलरुआ मीडिया घरों को पोषण करना भर रह गया है। 

उल्लेखनीय है कि देवघर और बासुकीनाथ में आज के दिन से कावंरियों के भव्य मेले की शुरुआत होती है। इस बार मुख्यमंत्री के हेलीकॉप्टर हादसे में घायल होने के कारण उन्हें ऑनलाइन ही उद्घाटन करना पड़ा है।